आदि में 'शब्द' था, 'शब्द' परमेश्वर के साथ था, शब्द ही परमेश्वर था


तो इस प्रकार से आप सबके सामने जो ये दर्शन वाली बात बतायी जा रही  है। अलग-अलग शरीर सहित चारों को अलग-अलग कहा बताया जा रहा है तो दिखाने की बात भी तो की जा रही है । एक पैसा किसी से भीख भी नहीं वसूला जा रहा है। कौन है इस मेला में जो कह देगा कि एक पैसा इस संस्था को दान-चन्दा दिया हो । जो एक मुठ्ठा अन्न दिया हो, जो एक प्रकार का एक पैसा, एक तिनका किसी प्रकार का सहायता किया हो ? भगवान् और भगवान् के इस संस्था में जन हैं । भगवान् और भगवान् के समर्पित-शरणागत इस संस्था में जो भक्त-सेवक हैं वे काफी हैं इस संस्था को चलाने के लिये, ये संस्था कोई भिखमंगा नहीं है, यहाँ दान-चन्दा, धन वसूलने के लिये मेला में पण्डाल नहीं लगाया है। ये आप जीवात्माओं के परमकल्याण के परम कल्याण के लिये, आप जीवात्माओं को मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध के लिये, ये संस्था पण्डाल गिराया है । आज चार दिन पहले शंका-समाधान था । आज छ: दिन है सत्संग का, लगभग दस दिन हो गया इस कार्यक्रम को चलते हुये । एक व्यक्ति अब तक नहीं आया जो यहाँ से होने वाली किसी चुनौती को गलत ठहराया हो । शास्त्र विरुध्द ठहराया    हो । जबकि पूरे मेला के किसी भी पण्डाल के, किसी भी मत-सिध्दान्त को मात्र एक घण्टा में गलत ठहराने की चुनौती यहाँ से दी जा रही है । कोई ऐलान करे और हमलोग सकल समाज के बीच में आध-अधूरा और शास्त्रीय प्रमाणों द्वारा, आध-अधूरा और गलत ठहराने की चुनौती हर किसी पण्डाल को है ।
हर किसी से निकलने वाले सिध्दान्त और आवाज को, आध-अधूरा, अंशवत् और गलत ठहराने की चुनौती मात्र एक घण्टा में यानी एक घण्टा के अन्दर हम लोग ऐलान कर रहे हैं । है किसी में क्षमता शक्ति तो ऐलान कर और हम लोग उसको गलत ठहरा करके, गलत प्रमाणित करके आप सबके समक्ष रख दें । ऐलान है । एक भी पण्डाल ऐसा नहीं है जो जनमानस के धन और धर्म दोनों का शोषण न कर रहा हो । दोहन न कर रहा हो, आप सबकी ठगहाई न कर रहा हो, लूट-खसोट न कर रहा हो । एक पण्डाल संस्थान नहीं है यहाँ पर इस मेले में । हर किसी के सिध्दान्त पहलू को जो भगवान् जी बने बैठे हैं जो गुरुजी बन बैठे हैं एक नहीं है एक जिनको आधा-अधूरा गलत ठहराने का, जो ऐलान है इसको सत्य प्रमाणित करने की बात न हो । वो ऐलान करें कि हमको गलत ठहरा दो समर्पण कर-करा जायेंगे हमारा तो ऐलान है कि आप गलत ठहरा दो, हम अपने सकल-समाज और आश्रमों सहित समर्पित हो जा रहे हैं आप हमको बिना तनख्वाह का नौकर बना लेना। और सत्य ही हो तो आकरके भगवान् के इस परमपुनीत कार्य में, धर्म-धर्मात्मा-धरती के रक्षा के कार्य में जिस तरह से हम लोग तन-मन-धन लगाकरके चल रहे हैं । आप भी अपना तन-मन-धन लगा करके इस घृणित, इस संकुचित घर-परिवार के दायरे को तोड़कर, इस विराट बृहद दायरे को 'बसुधैव कुटुम्बकम्' के दायरे से जुड़कर धर्म-धर्मात्मा-धरती के रक्षा में लग लगा ले हमारा यही प्रयोजन है । कोई ऐसा नहीं बता सकता है धरती पर ब्रम्हाण्ड में इससे परमपुनीत कार्य कुछ हो सकता है । इस कार्य के लिये, धर्म-धर्मात्मा-धरती के रक्षा के लिये, परमब्रम्ह-परमेश्वर अपने परमधाम को छोड़कर, सच्चिदानन्द, परमानन्द, परमशांति वाला परमधाम छोड़करके, इस भूमण्डल पर आता है आप एक कुत्तो की सूखी हड्डी के तरह से आप पतन के मुँह में भाग रहे हैं।
जैसे कुत्ता सूखी हड्डी लेकर मुँह निकालकर भागता है, क्या है भाई क्यों भाग रहे हो ? शेर छीन लेगा इसलिये भाग रहा हूँ । अरे ! इस हड्डी से तुमको क्या मिलेगा ये तो हड्डी तुम खा भी नहीं सकते हो, चबा भी नहीं सकते हो । झूठ-मूठ में सूखी हड्डी लेकर भाग रहे हो । क्या इतना भी पता नहीं कि शेर दुनिया का राजा होता है। शेर शिकार करके खाना जानता है, शेर किसी को दूसरे के मारे हुए मुर्दा को खाना नहीं जानता है। वो राजा है जंगल का, मार करके शिकार करके खाना जानता है । ये सूखी हड्डी लेकर भाग रहा है कि शेर छीन लेगा ।
जिस तन-मन-धन को ले करके आप परिवार में हर प्रकार के पाप-कुकर्म करने पर लगे हो झूठ-फरेब-चोरी-बेइमानी करने में लगे हो । इसी को लेकर मुँह फुला रहे हो कि हमारा समर्पण हो जायेगा, हमारा सब ले लिया जायेगा । अरे समर्पण क्या होगा ? समर्पण तो तेरे भार का होगा । समर्पण तो तेरे पाप-कुकर्म और पाप की गठरी का होगा ।
भगवान् तेरा समर्पण करा करके तेरे से भीख थोड़े मँगवायेगा । भगवान् समर्पित क्या कराता है ? तेरा भार लेता है । जिसको लेकर के भवसागर में डूब रहे हो । सड़गल रहे हो, पतन और विनाश को जा रहे हो । वही घृणित और निन्दनीय चीज समर्पण करता है और सृष्टि का सबसे बन्दनीय, सबसे पवित्रतम् जो भगवद्ज्ञान है, जो साक्षात् भगवान् है जो मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध है वो प्रदान करता है बदले में । बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽऽ जय।
अब हम लोग पुन: इस स्थिति में चलेंगे कि वास्तव में वो परमात्मा क्या है ? परमेश्वर क्या है ? कहाँ रहता है ? उसकी वास्तविक स्थिति क्या हैं ? बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !
आप सबको याद होगा कि वही रात हम एक बात बताये थे कि जब भी, सृष्टि के विषय में सैध्दान्तिक पक्ष को जानना होगा क्रमश: उपर से नीचे को आना होता है । पहले परमब्रम्ह को परमात्मा को जानना होगा, तब उससे उत्पन्न हुये प्रकट हुये आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह को जानना होगा । उसी के प्राकटय में जो शक्ति है उसे जानना होगा । क्रमश: शक्ति से आकाश, वायु, जल, थल इस ब्रम्हाण्ड के स्थिति को जानना होगा। फिर उस पंच भौतिक पदार्थ से ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति, इस सभी व्यक्तियों की उत्पत्ति, सर्वनाम शरीरों की उत्पत्ति कैसे होती है इसको जानना होगा ? तत्पश्चात इसमें किस प्रकार से जीव पड़ता है और ये सर्किल कैसे पूर्ण होता है ? जानने के लिये क्रमश: उपर से नीचे को आया जायेगा लेकिन जब प्रेक्टिकल करना होगा । जब हम लोग दर्शन से गुजरेंगे, प्रैक्टिकल से गुजरेंगे तो हम ऊपर पहले जा ही कैसे सकते हैं? जानना तो होगा ऊपर से नीचे को । जिस प्रकार से हम पैदा हुये थे प्रकट हुये थे तो गरते-गिरते आकर के हमलोग यहाँ संसार में डुबकी खाये पड़े हैं । गिर तो चुके हैं मुँह की खाये संसार में पडे हैं । जानना तो आपको उसी प्रकार से होगा लेकिन जब देखते हुये बढ़ना होगा तो नीचे के क्रम से बढ़ना होगा । संसार के वास्तविकता की देख करके कि ये कुछ नहीं है ये झूठा है ये एक मायावी है, ये भ्रमजाल है ये बिल्कुल कुछ नहीं है आप झूठ में इसको पकड़ करके बैठे हैं । पहले सबसे पहले 27 तारीख को ये दर्शन आपको मिलेगा ।
ये संसार जिस तन-मन-धन को समर्पण की बात कही जा रही है जिसके बदले में भगवान् मिलना है मोक्ष मिलना है, मुक्ति-अमरता मिलना है । वह तन-मन-धन किस प्रकार से झूठा है । ये पहले ही दिन के प्रैक्टिकल में देखने को मिलेगा। यानी समर्पण-शरणागत क्या करना है ? इस तन-मन-धन झूठे को, जबकि झूठापन को पहले ही दिन देखना होगा । तब दूसरे 28 को सूक्ष्म दृष्टि से जीव-रूह-सेल्फ-स्व अहं का दर्शन करेंगे । तत्पश्चात् दिव्यदृष्टि से इस आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह को जो तेजोमय है। जो काला शरीर है उसका दर्शन करेंगे । दुनिया के सभी ऋर्षि-महर्षि, सन्त-महात्मा, आलिम-औलिया- पीर-पैगम्बर, तीर्थकर-प्राफेट्स के भगवान् को । जो दुनिया वालों के भगवान् जी हैं जिसकी लड़ाई यहाँ पर रोज लड़ी जा रही है । जिसके लिये रोज खींचा-तानी हो रही है । माइक-कुर्सी देने पर कैसे कहते हैं यही परमात्मा नहीं है । आत्मा ही तो परमात्मा है । ईश्वर ही तो परमेश्वर है ये आत्मा ही तो भगवान् जी हैं। ये जो आपकी लड़ाई अपने आप खत्म हो जायेगी  29 तारीख को । क्योंकि इन सभी के महात्मा जी, गुरुजी लोगों के जो भगवान् जी हैं सभी ग्रन्थों के जो भगवान् जी हैं परमात्मा हैं उनका दर्शन तो आपको 29 तारीख को ही करा दिया जायेगा । बच्चों के खेल जैसे, कुछ सेकण्डों में, जिसके दर्शन के लिये चालीस-चालीस, पचास वर्ष से ये महात्मा जी गुरुजी लोग जिसके खोज में चालीस-पचास साल से लगे हुये हैं । मिला होगा कि नहीं मिला होगा उसी भगवान् जी को चालीस सेकण्ड भी नहीं दस-बीस सेकेण्ड भी नहीं, दो-चार-पांच सेकेण्ड में ।
जब हम महाराष्ट्र में इस कार्यक्रम को कर रहे थे वहाँ के पेपर वालों ने हमारे खिलाफ ऐलान किया । ऐसे सन्त जी कह रहे है कि हम पांच सेकेण्ड में सभी लोगों के ईश्वर का भगवान जी का दर्शन करा देंगे । कैसे दर्शन करा देंगे ? ये पांच मिनट में करा दें, पेपर वालों ने ऐलान किया था । ऐसा हुआ कि जब दर्शन का क्लास चलने लगा तो क्या भगवान् जी की ऐसी स्थिति हुयी, कृपा हुयी दो सेकण्ड तीन सेकेण्ड, सात सेकेण्ड जाते-जाते हर किसी का दर्शन शायद किसी का पांच सेकण्ड गया हो। पांच मिनट की चुनौती पेपरों में थी । पांच मिनट की चुनौती पेपर वाले दे रहे थे । और पांच सेकण्ड के अन्दर जो है शायद एक आधा को पांच सेकण्ड लगा हो । सब दो-तीन-चार सेकेण्ड, दो-तीन सेकेण्ड किसी-किसी का चार सेकण्ड । और फिर पेपर वालों को निकालना पड़ा इस चीज को कि सन्त ज्ञानेश्वर ने अपने घोषित उद्देश्यों को पूरा किया ।
तो इस तरह से ये चुनौतियाँ, जब हम लोग कार्यक्रम विराटनगर में कर रहे थे 92 में तो विराट नगर में जो हलचल मचा था वो तो मचा ही था काठमाडौं और विराटनगर में किस तरह से गली-गली में हलचल था कि यहाँ से मंत्री जी का कार्यक्रम विराटनगर में था और इसी आन्दोलन में मंत्री जी लोग भेजे थे एक तरफ कार्यक्रम चल रहा है और सब हुआ-हुआ करने वाले महात्मा सड़क पर, एस0पी0 फोर्स लेकर सड़क पर बैठा है हम लोगों का ऐलान था कि क्षमता शक्ति हो तो गलत ठहरा दो, क्षमता शक्ति हो तो गलत ठहरा दो । अन्यथा तुम होते कौन हो सत्य के कार्यक्रम को रोकने वाले, और कार्यक्रम होने लगे तो शहर और सबके सब एक हो कर खिलाफत करने लगे सारे पेपर में खिलाफत निकलने लगा । कैसे महात्मा कहता है जीव अलग है, ईश्वर अलग है, परमेश्वर अलग है ? कैसे दर्शन करा देगा अलग-अलग सब ? ये दान-दक्षिणा वाले इक्कठा हो गये और हुआ कि हम दिखायेंगें । वहा के महाराजधिाराज के बड़े गुरुजी भी समूह में मिल गये । कार्यक्रम जो है दर्शन का कार्यक्रम ज्ञान से एक नहीं, लगातार तीन-तीन कार्यक्रम किया गया । इन लोगों को भरपूर जबाब देकर के हमलोग काठमाडौं से वापस चलेंगे और दिया गया ।
इस कुम्भ में 82 में क्या हलचल मचा था ये परमानन्द जी बतायेंगे ये परमानन्द जी युग पुरुष युग सम्राट कहलाते हैं । ये जिम्मा लिये यहाँ के चुनौती को स्वीकार करने की एक पीला कागज छपवा दिये कि हम सन्त ज्ञानेश्वर के इस ऐलान चुनौती को स्वीकार करते हैं और जब हुआ कि सामने आने के लिये तो कुल गति हो गयी । मेला प्रशासन से सुरक्षा फोर्स मांगे और सुरक्षा फोर्स मिलने के बाद कृतज्ञता व्यक्त किये अपने किये का । और इस मेला के भगवान् जी लोग मेला प्रशासन के समक्ष धरना पर बैठे थे सन्त ज्ञानेश्वर को यहाँ से हटाया जाय सबको ऐसा कह रहे हैं वैसा कह रहे हैं सब हुऑं-हुऑं करते रहे । सन्त ज्ञानेश्वर जी का कार्यक्रम पूरा हुआ। प्रशासन की बैठकें बराबर होने लगीं । क्या-क्या हुआ प्रशासन को अच्छी तरह मालूम है । ये तथाकथित भगवान् जी लोग को अच्छी तरह मालूम है और कार्यक्रम पूरा हुआ । यह कोई गुड्डा-गुड्डी का खेल नहीं है। सियार का हुऑं-हुऑं नहीं है। ये जंगल के शेर की दहाड़ है । ये सम्पूर्ण ब्रम्हाण्डों के मालिक परमप्रभु परमेश्वर का चुनौती है ऐलान है । जो कोई क्षमता-शक्ति रखता हो जाँच-परख कर सकता है । जाँच-परख की खुली छूट है । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय ! परमप्रभु परमेश्वर की जय !!
एक बार तो खड़ा-खड़ा लोट गये दुबारा पहुँच गये । ये भगवान् जी की मशीन है। भगवान् जी के संसार में, भगवान् जी की मशीन है । भगवान् जी के संसार में, भगवान् जी के भक्तों को ज्ञान देने में लगा है ये लोग भगवान् जी के हो गये हैं इसलिये इस मशीन को अपना देखते हैं । इनको तो अपने मशीन की चिन्ता है कि हमारी मशीन बरकरार बनी रहे। बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की ऽऽ जय !
विराट नगर के चुनौती में ये लोग थे एक सूरजभान जी हैं एक महात्मा दीपक जी यहाँ हैं एक इनके छोटे भाई । ये लोग उसी चुनौती और भीड़ भाड़ के बीच में एक तरफ हम लोगों का दर्शन का कार्यक्रम चल रहा था बाहर मार धूम-धड़ाम एस0पी0 बेचारा फोर्स लेकर डयूटी दे रहा था। और उसी में हो रहा था दर्शन में आ बाहर धूम-धड़ाम लोग कर रहे थे । कार्यक्रम शान से हम लोग पूरा किये और उद्धोषित करके वहाँ से शान से आये । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की जय !
दो ही सत्र एक दिन और रह गया है अब हम लोग जल्दी-जल्दी कोर्स की तरफ भागें । जो प्रैक्टिकल कराना है न थोड़ा जान लें । भगवान जी के तरफ से जानकारी ले लें । अब भगवान् जी क्या हैं कहाँ रहते हैं ? कैसे रहते हैं ? ये बता दें । बोलिये परमप्रभु परमेश्वर की ऽऽ जय !
अब हम लोग शुरू करने चल रहे हैं । ठीक ऐसा ही प्रैक्टिकल होगा। दर्शन वाले लोग जिनको दर्शन में भाग लेना है । इन बातों को अक्षरश: शब्दश: जानने पकड़ने का कोशिश करेंगे । समझने की कोशिश करेंगे । इस समय के शंका-समाधान में प्राय: उन्हीं को मौका मिलेगा एक जो पण्डित जी हैं आ जायेंगे तो उनको भी मौका दिया जायेगा ।
तो इस प्रकार से जब सृष्टि नाम की कोई चीज नहीं । गौर कीजियेगा जब सृष्टि नाम की ब्रम्हाण्ड नाम की कोई चीज नहीं । कोई वस्तु नहीं, कोई व्यक्ति नहीं था, थल नहीं, ये जल नहीं, ये अग्नि नहीं, ये आकाश कोई गैस नहीं, हाइड्रोजन और हीलियम गैस नहीं । ये वैज्ञानिक जो है ये मूढ़ अन्धे सब जो हैं सब वैज्ञानिक कहते हैं-- जब ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति हाइड्रोजन और हीलियम गैस नहीं है जब हाइड्रोजन, मूढ़ कहीं के हाइड्रोजन और हीलियम तो ब्रम्हाण्ड ही है इस हाइड्रोजन और हीलियम की उत्पत्ति क्यों नहीं बताते हो ? ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति हाइड्रोजन और हीलियम गैस से हुई  है । अरे ! इस हाइड्रोजन और हीलियम गैस को भी बताना चाहिये । जब ये कोई गैस भी नहीं, हाइड्रोजन और हीलियम जब गैस भी नहीं था । ये आकाश भी नहीं, ब्रम्हाण्ड में कोई शक्ति भी नहीं उत्पन्न हुई थी कोई शक्ति नाम की चीज भी नहीं थी । आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-सोल शक्ति भी कोई नहीं, नूर भी नहीं, सोऽहँ भी नहीं, हँ्सो भी नहीं, ज्योति भी नहीं, आत्मा- ईश्वर-ब्रम्ह भी कहीं कोई कुछ नहीं उस समय एक मात्र अकेला, उस समय एकमात्र अकेला एक परमात्मा- परमेश्वर- परमब्रम्ह-खुदा- गॉड- भगवान्- अल्लाहतऽला-कादिरेमुतलक-सुप्रीम आलमाइटी-सुप्रीम लार्ड एक अकेला, एक मात्र एक अकेला था । सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड की सम्पूर्ण क्षमता शक्ति-सामर्थ्य नाम रूप सम्पूर्ण का सम्पूर्ण उसी में समाहित था । उसी में स्थित था। कहीं कुछ नहीं । ये आत्मा-ईश्वर-ब्रम्हा भी नहीं, मूल प्रकृति आदि शक्ति महामाया भी नहीं । एकमात्र एक परमेश्वर । एकमात्र एक परमेश्वर । किस रूप में   था ? क्या नाम था उसका ? क्या रूप था उसका ? उस स्थान का नाम क्या है ? जहाँ वो था ।
भैया कोई नाम तो था ही नहीं, कोई रूप तो था ही नहीं, कोई स्थान तो था ही नहीं, वही नाम था, वही रूप था, वही स्थान था वही सर्व शक्ति-सत्ता सार्मथ्यवान भगवान् था । एकमात्र एक, एकमात्र एक । नाम, रूप, स्थान, केन्द्र हो जाय तब तो दोष हो जाय क्यों ? 'एक अनीह, अरूप, अनामा' 'एक अनीह अरूप, अनामा अज सच्चिदानन्द परमधामा।' इसका प्रैक्टिकल उस समय था। एक था, अनीक्षित था, अरूप था, अनाम था अजन्मा था । अनाम, अरूप, एक का मतलब यह नहीं कि वह कुछ था ही नहीं । अनाम, अरूप, एक का मतलब यह नहीं कि वह कुछ था ही नहीं। अनाम, अरूप, स्थान रहित का मतलब ये कदापि नहीं होगा कि वो कुछ था ही नहीं, वही तो था एकमात्र जो सबकुछ था ।  क्या था ? सच्चिदानन्द भगवान् था। परमभाव, प्रभाव वाला परमेश्वर था परमब्रम्ह था । उसी के विषय में बाइबिल में आया है ''बिगनिंग वाज द वर्ड, वर्ड विथ गॉड एण्ड वर्ड वाज द गॉड ।आदि में बचन था शब्द था, आदि में बचन था शब्द था । शब्द परमेश्वर के साथ था, आदि में बचन था, शब्द था, शब्द परमेश्वर के साथ था और शब्द ही परमेश्वर था। इसका दर्शन होगा 31 तारीख को । ये जो तीन चरण है । तीन चरण में जो वर्णन है कि आदि में शब्द था, आदि में क्या था, शब्द था नानक देव जी ने क्या कहा था ? 'शब्द ही धरती, शब्द ही आकाश, शब्द ही शब्द भयो प्रकाश, सगली सृष्टि शब्द के पाछे ।' यानी सारी जो सृष्टि ब्रम्हाण्ड है उस शब्द मात्र के बाद में हुआ है । पाछे हुआ है उस समय केवल एकमात्र एक 'शब्द' था । जिसे शब्दब्रम्ह कहा गया उस शब्द का जिसे शब्द कहा गया (वो शब्द पहला चरण, ठीक इसी प्रकार से आप लोगों को दर्शन होगा। 'शब्द' परमेश्वर के साथ था । शब्द जो है परमेश्वर के साथ था । परम भाव, प्रभाव वाला था। सर्वशक्ति सत्ता-सामर्थ्य वाला था । दूसरे चरण में किस प्रकार देखने को मिलेगा। दर्शन करने को कि शब्द परमेश्वर के साथ था । तीसरे चरण में क्या मिलेगा कि शब्द ही परमेश्वर था । 'शब्द' ही परमेश्वर था ।
अब सवाल उठता है कि वो कैसा शब्द था ? वो कौन था ? इस प्रकार की जानकारी इस प्रकार का ज्ञान परमेश्वर में, जब ग्रन्थों में क्या कहे थे कि परमेश्वर इतना पक्का खिलाड़ी होता है । इस सृष्टि का सबसे पक्का खिलाड़ी परमेश्वर होता है यदि थोड़ा सा परमेश्वर गफलत हुआ होता, अपने सृष्टि से और हाथी का हाड़-चींटी को लिख जाता तो एक हाथी के हाड़ में लाखों चीटियाँ मर जाती। लाखों चींटियों का हाड़ हाथी को मिलता हाथी भूखों मर जाता । इतना भी गफलत  नहीं है। समुद्र के पेदी में रहने वाले जलचर को भी खुराक देता है । समुद्र के पेदी में, जल के तल में रहने वाले को भी खुराक देता है । व्यवस्था करता है । वनचर की व्यवस्था, थलचर की व्यवस्था करता है, जल चर की व्यवस्था देता है, थलचर की  देता है तो कौन सी बड़ी बात है । थलचर को दिया तो कौन सी बड़ी बात है । नभचर, वनचर थलचर को भी देता है । आप देखे होंगे लकड़ी चिरते हुये, आप देखते होंगे की भीतर चीरा लगाने पर बीच में गङ्ढा है और भीतर एक कीड़ा है । टाड़ा जिसको कहते हैं टाड़ा, पता नहीं आप लोग क्या कहते हैं ? टाड़ा इतना बड़ा होता है । खूब स्वस्थ्य कीड़ा होता है । बाहर से कोई खुराक नहीं । लकड़ी में बाहर से कोई खुराक नहीं । जिसे भीतर उसमें सुराख बना हुआ है उसी में बेचारे टाड़ा जी बैठे हुये हैं । वहाँ भी खुराक उनको मिल रहा है । वहाँ भी उनका जीवन है और स्वस्थ जीवन है । अन्टार्कटिका द्वीप है जहाँ केवल बर्र्फ ही बर्फ है । जहाँ केवल बर्फ ही बर्फ है । बर्फ के सिवाय कुछ नहीं है ।  सैकड़ो-हजारों किलोमीटर तक बर्फ ही बर्फ केवल बर्फ। वहाँ का पक्षी भी 'पेंगुइन''पेंगुइन' पक्षी भी 'पेंगुइन' पक्षी वहाँ भी है । आप देखते होंगे केल्विनेटर जब फ्रीज खरीदते हैं । केल्विनेटर नाम का जो फ्रिज है उस पर 'पेंगुइन' पक्षी का चित्र बना हुआ है ।
वहां पर 'पेंगुइन' पक्षी है । क्या खाता है लोगों को पता नहीं चल रहा है सबसे स्वस्थ और शांत पक्षी, उतना स्वस्थ, शांत पक्षी कोई इधर का नहीं मिलेगा । और सबसे शान्त पक्षी, सबसे शान्त । ये ग्रुप बड़ा पक्षी 'पेंगुइन' पक्षी है । मनुष्य पर कोई आक्रमण नहीं कुछ नहीं । क्या खाता है उसे बर्फ पर, क्या मिलता है उस बर्फ पर । लेकिन वह भी एकदम स्वस्थ पक्षी है । वहाँ भी परमेश्वर उसको आहार देता है । समझिये तो सही ।
बोलिये परमप्रभु परमेश्वर ऽऽ जय !
जो भी थोड़ा बहुत जानकारी रखते हैं, धर्म के विषय में, धर्मात्मा के विषय में और धरती के विषय मेंवे जानते हैं की धर्म-धर्मात्मा-धारती के रक्षा का कार्य स्वयं परमेश्वर के अलावा और कोई नहीं कर सकता। अब सवाल उठता है कि इस कार्य को, धर्म-धर्मात्मा-धरती के रक्षा के लिए परमात्मा-परमेश्वर ही सक्षम है । जो कोई बनने का स्थान नहीं होता । तो क्या है परमात्मा-परमेश्वर, तो इस विषय में परमात्मा परमेश्वर कोई बनने का स्थान नहीं होता और न ही बनने की चीज होता है। हम लोग ज्ञान को आगे करके चलने लगे कि पहले आप जान ही लीजिए, देख ही लीजिए जाँच परखकर ही लीजिए , इसलिए हम लोग इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ज्ञान को आगे करके चलने लगे । ज्ञान जो वास्तव में 'तत्त्वज्ञान' है। हो सकता है आप सब के लिए यब्द नया हो ज्ञान लेकिन 'तत्त्वज्ञान' वह भगवद् ज्ञान है, यह वह सम्पूर्ण ज्ञान है जिसमें परमाणु से लेकर परमेश्वर तक का सम्पूर्ण ज्ञान जानने को, देखने को और बातचीत सहित परख-पहचान करने को सहज भाव से सुलभ होता है अर्थात् प्राप्त होता है। इसमें जीव एवं आत्मा और परमात्मा, जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर, जीव एवं ब्रम्ह और परमब्रम्ह , रूह एवं नूर और अल्लाहतऽला, सेल्फ एवं सोल और गॉड-- इन तीन नाम नामित सत्ता यक्तियों में से, अस्तित्वों में से प्रत्येक को जानने का, देखने का और बात-चीत कर पहचानने का कार्यक्रम चल रहा है। जहाँ कहीं भी कार्यक्रम को हम शुरू करते हैं तो जब परचा पोस्टर्स बँटने सटने लगते हैं, जब बुकलेट्स बँटने और जनमानस में पहुँचने लगते हैं तो थोड़े देर के लिए चारों तरफ विचार होने लगता है, गहन आपस में मंत्रणायें होने लगती हैं कि 'वाह ईश्वर और परमेश्वर का दर्शन मात्र तेरह दिन के कार्यक्रम में ? चौदह दिन के कार्यक्रम में ? ऐसा हो नहीं सकता है ! ये तो कोई जादू होगा । कोई मिस्मरिज होगा! कोई सम्मोहन होगा औैर कुछ हो नहीं सकता! ऐसे कभी हुआ है? एक से एक महात्मा हैं, एक से एक गुरुजन हैं, उपदेशक हैं -- ऐसा तो कोई नहीं कहता !'
यह बात सही है कि आप से सही किसी ने नहीं कहा होगा । कोई सन्त महात्मा, कोई गुरुजन, सदगुरुजन, धर्मोपदेशक निस्संदेह आप के सामने नहीं कहे होंगे की हम जीव का दर्शन कराऐंगे, हम आत्मा -ईश्वर-ब्रम्ह का दर्शन कराएंगे, हम परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड भगवान् को दिखलाएंगे । इनका दर्शन कराऐंगे, गीता वाला विराट दिखाऐंगे-- ऐसा किसी ने भी नहीं कहा होगा। वे कह भी कैसे सकते हैं? केवल कह देना मात्र तो है नहीं । कहने के बाद कराना भी तो रहेगा? कहने के बाद कराना भी तो सदा रहेगा ।
अभी हम लोग परसों ही कार्यक्रम सम्पन्न करा कर आ रहे हैं । सारे शहर में एक कोलाहल सी स्थिति छाई हुइ है। जहाँ देखिए वहीं इसकी चर्चा ! वाह मात्र तीन दिन के सत्संग कार्यक्रम में जीव और ईश्वर का साक्षात् दर्शन। चारों तरफ शोर, चारों तरफ आपस में राय परामर्श, पूरे शहर में एक चर्चा का विषय बन था । आप सबको बड़ा आश्चर्य होता होगा, लेकिन हमको आप सब पर आश्चर्य हो रहा है। आप सब श्रोता बन्धुओं पर हमको आश्चर्य हो रहा है ! एक तरफ सुनने जानने को लग रहा है कि आप सब आदमी हैं! आप सब मनुष्य हैं! सुनने-देखने-जानने में भी यही लग रहा है कि आप सब आदमी हैं। लेकिन आप सब कौन से आदमी हैं? किस ग्रन्थ की परिभाषा में आप सब आदमी हैं ? आदमी और जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन पर आश्चर्य करते हैं ? आप आदमी ही हैं? हमको तो सोचना पड़ जा रहा है! आप सब के आदमी होने पर आश्चर्य हो रहा है हमें कि आप सब आदमी ही हैं ? आप सब मनुष्य ही हैं जो आश्चर्य करने लगे कि ईश्वर-परमेश्वर का दर्शन कैसे होगा -- नहीं हो सकता ! क्या कहूँ धिक्कार दूँ या धन्यवाद दूँ आप सबके आदमी होने पर? यह किसी परिभाषा में नहीं है। कहीं आप सबने मनुष्य की परिभाषा पढ़ा है ? आप सबने आदमी की जानकारी लिया है कि कैसा होता है मनुष्य ? मनुष्य माने क्या होता है? मनुष्य माने भोगी व्यसनी जीव नहीं, आदमी मनुष्य माने विवेकशील प्राणी । आदमी माने विवेकशील, बुध्दिजीवी प्राणी । बुध्दि विवेक माने ? आपने जाना है कि विवेक किसे कहते हैं ? विवेक उस विधान का नाम है जिसमें जीव- ईश्वर-परमेश्वर का साक्षात् दर्शन करने को मिलता है । भगवान् ने जो विवेक दिया था, किस कूड़ेदान में आपने डाल दिया उसे ? भगवान् ने जिस विवेक को दिया था किस कूड़ेदान में डाल दिया ? और विवेक रहित आप कैसे आदमी कहलाने लगे ? विवेक रहित भी कहीं आदमी होता है? विवेक रहित भी कहीं मनुष्य होता है ? आप सब आदमी और मनुष्य ही रह गये ? जिस किसी को भी धरती पर मानव यरीर मिली हो, मानव आकृति मिली हो और वह जीव दर्शन पर एवं ईश्वर दर्शन पर और परमेश्वर दर्शन पर, उनके परिचय-पहचान पर आश्चर्य करता हो या उसे आश्चर्य लगता हो तो वह मनुष्य की परिभाषा में आ नहीं सकता ! वह मनुष्य की परिभाषा में आ नहीं सकता । वह तो दिन भर जुटाना शाम-सुबह खाना, फिर सुबह-शाम पखाना, फिर दिन भर जुटाना खाना फिर पाखाना। पहली को पाना, तीस तक खाना, तीसों दिन गुलामी बजाना । यह मनुष्य की परिभाषा में है कहीं ? यही मनुष्य की परिभाषा में है?
जब सत्संग सम्पन्न होने लगेगा तो आप सब को कुर्सी मिलेगा, माइक मिलेगा । आप सबको भरपूर अवसर दिया जाएगा । दिल खोल करके वार्ता करने के लिए । इससे ऊपर उठकर वार्ता करने के लिए । यह (वाराणसी) विद्वत नगरी है । वैसे है तो थी कभी, है तो नहीं । यह धर्म की नगरी थी, लेकिन है नहीं। थी कभी, यह धर्म की नगरी । है नहीं, थी कभी-- यह सुनने को मिलता है। देखने को नहीं, सुनने को मिलता है। अस्सी के लास्ट में इक्यासी में (सन् 1981 में) बहुत इस नगरी को देखने को मिला है । यहाँ के विद्वान जी लोगों को देखने-सुनने को मिला है। जितने बड़े से बड़े विद्वान जी यहाँ पर हैं, जितने बड़े से बड़े धर्मज्ञ हैं -- सबको देखने को मिला है। आज यह काशी नगरी जो है-- अब रहने दीजिए, छोड़िये इस काशी नगरी की बात को ! आइए मूल विषय पर ।
तो क्या आपने अपने से यह प्रश्न उठाया कि मानव जीवन किसलिए है ? यह मानव जीवन है क्या और किसलिए है ? फिर दोहरा रहा हूँ कि क्या आपने कभी अपने से प्रश्न उठाया कि जो मनुष्य आप कहला रहे हैं, जो आदमी आप कहला रहे हैं एक बार भी आपने अपने से यह प्रश्न उठाया कि आदमी मनुष्य क्या है और किस लिए है ? जब तक किसी भी विषय-वस्तु के अस्तित्व को नहीं जानेंगे, अस्तित्व को नहीं जानेंगे कि वह क्या है और किस लिए है, जब तक ये दो प्रश्न हम-आप नहीं जानेंगे, तब तक किसी भी वस्तु का उपयोग-सदुपयोग कैसे होगा या कैसे करेंगे ? क्या करेंगे उस वस्तु को जब उसके बारे में पता ही न हो कि वह विषय-वस्तु क्या है और किस लिए है ? किसी भी वस्तु को लीजिए, चाहे दुनिया के लौकिक क्षेत्र का हो या पारलौकिक क्षेत्र का हो, कोई भी वस्तु यदि आपके सामने पड़ी है तो क्या यह अनिवार्य नहीं है, उस वस्तु के प्रयोग से पहले यह जान लें कि वह क्या है और किसलिए है, जब तक हम किसी विषय-वस्तु के बारे में जानेंगे नहीं कि वह क्या है और किस लिए है -- प्रयोग हो ही नहीं सकता ।
ये चार अक्षर पढ़ लेते हैं, ये चार अक्षर पढ़ लिए-- बी0 0, एम00, एम0एस0सी0 वगैरह कर लिए-- डाक्टर बन गए एम0बी0बी0एस0 हो गए या चाहे इन्जीनियर हो गए तो ऐंठ कर बोलने लगे । लेक्चरर साहब भी हैं तो चार अक्षर पढ़ लिए कि अब उनका फटने लगा कर्तव्य ! अब उनका दायित्व और कर्तव्य फटने लगा! माई-बाप का परवरिश कर्तव्य है, बेटा-बेटी का परवरिश कर्तव्य है, घर चलाना कर्तव्य है । पता नहीं इन मूर्खों को कर्तव्य की परिभाषा कहाँ से आई ? जानने को और कहने को तो अस्तित्व का पता ही नहीं तब ! कर्तव्य कहाँ से आ जाएगा ? यह पता ही नहीं की 'हम' जीव हैं कि आत्मा हैं कि परमात्मा हैं। जब तक यह पता नहीं होगा कि 'हम' क्या है तब तक यह कैसे पता चलेगा कि हमारा कर्तव्य-दायित्व क्या है? हमारा दायित्व कैसे पता चलेगा कि हमारा दायित्व क्या है। चार अक्षर पढ़ लिए, चार पैसा कमाने लगे, पेट भरने लगा तो बोलने लगे -- 'कर्तव्य और दायित्व'। ये कर्तव्य-दायित्व कहाँ से आ गये जब पता ही नहीं 'अस्तित्व' क्या है? किसी भी कर्तव्य-दायित्व का निर्धारण अस्तित्व और पोजीशन के आधार पर होता है। अस्तित्व का जब तक कोई पता ही नहीं कि यह 'हम' क्या है, कहाँ से आया है, किसलिये आया है -- तब तक हमारा कर्तव्य कैसे पता चल जाएगा, हमारा दायित्व कैसे पता चल जाएगा ? हमारा कर्तव्य क्या है ? हमारा दायित्व क्या है-- यह कैसे पता चलेगा ? चार अक्षर पढ़ लिए तो कहने लगे कर्तव्य और दायित्व ! अरे भाई, कर्तव्य-दायित्व कहाँ से आ गया जब पता ही नहीं कि
अस्तित्व क्या है, पोजिशन क्या है ? किसी भी कर्तव्य-दायित्व का निर्धारण, अस्तित्व और पोजिशन से होता है । जब तक अस्तित्व और पोजिशन का पता नहीं चलेगा, तब तक कर्तव्य और दायित्व जनम ही नहीं लेगा। जब तक अस्तित्व का पता ही नहीं चलेगा, तब तक कर्तव्य और दायित्व कहाँ से जनम ले लेगा, कहाँ से उत्पन्न हो जाएगा ?
बन्धुवर जरा सोचिए अपने जीवन पर । देखिए बन्धुजन यदि आप मनुष्य कहलाने के हकदार हैं, यदि आप आदमी कहलाना चाहते हैं, मैन-परसन कहलाना चाहते हैं तो यह अनिवार्य है कि सबसे पहले आपको विवेक का प्रयोग करना होगा । जीवन में विवेक को आगे लाना होगा । बुध्दिमात्र को नहीं । मात्र बुध्दि से यह सब नहीं होगा । बुध्दि हमारे आपके सांसारिक कार्य के लिए है । यदि वास्तव में हमें पारलौकिक विषय वस्तु की जानकारी प्राप्त करनी है, यदि हमको ईश्वर और परमेश्वर से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करनी है तब विवेक का प्रयोग करना होगा । तब विवेक के शरण में जाना होगा । विवेक ही एक मात्र पध्दति है जिसमें हमारे आपके जीवन के अस्तित्व का सूत्र है-- परिभाषा है, सिध्दान्त है, व्याख्या है, प्रयोग है और उसमें उपलब्धियाँ हैं। यदि आप विवेकशील नहीं बने तो नि:सन्देह आप पुरुष की परिभाषा में नहीं जा सकते अर्थात् आप पुरुष नहीं कहला सकते । मनुष्य कहलाने के लिए विवेक का प्रयोग अनिवार्य है। बुध्दि तो आपकी दौड़ती है लेकिन विवेक जरूरी है। आज के सर्टिफिकेट प्राप्तकर्ता लोग यह प्रमाणित कर रहे हैं कि बुध्दि में डोलफिन मछली मनुष्य से भी आगे है लेकिन विवेक उसके पास भी नहीं है । विवेक परमेश्वर ने केवल मनुष्य को ही दिया है जिसको आप लोगों ने बन्द पैकिट खोला ही नहीं । खा-चबा गए । आप अपने जीवन में विवेक की पोटली खोला ही नहीं। मनुष्य कहलाएंगे सब    कैसे ? मनुष्य की परिभाषा सूत्र जानेंगे कहाँ से ? मनुष्य का अर्थ आएगा कहाँ से ? मनुष्य का कर्तव्य और मनुष्य का दायित्व ये कहाँ से आएगा? सपोज करें की कोई जिला मुख्यालय का आफिस है । उसमें चारो श्रेणियों का पोस्ट है। अर्दली का भी है गेट पर, क्लर्क महोदय का भी है काउण्टर पर और साहब का भी है चेयर पर । क्लास वन के सरकार भी बैठते हैं केबिन में। आपको पता ही नहीं कि आप क्लास फोर वाले हैं, क्लास सी वाले हैं, क्लास टू वाले हैं या क्लास वन वाले हैं तो आप किस चेयर पर बैठेंगे और कहाँ बैठेंगे? जब आपको पता ही नहीं कि आपकी पोजिशन क्या है, आपको कहाँ बैठना है ? फिर हम वही बात दोहरा रहे हैं कि जब आपको पता ही नहीं है कि आपकी पोजिशन क्या है और आपको कहाँ बैठना है, तब तक आपके दायित्व और कर्तव्य का पता आपको कैसे चलेगा ? स्टूल पर बैठेंगे और कर्तव्य का निर्वाह करेंगे ? स्टूल वाले हैं तो काउण्टर पर बैठेंगे क्लर्कों की डयूटी निभाने के लिए ? आप काउण्टर वाले हैं तो जाऐंगे चेयर पर बैठ कर डयूटी देने के लिए ? काउण्टर वाला जाकर केबिन में डयूटी देगा ? सोचिए तो सही !
कहा जाता था कि शूद्र यदि वेद पढ़ेगा तो अपराधी हो जाएगा ! क्या गलत कहा? आज यदि अर्दली जाकर जज की कुर्सी पर बैठकर जजमेन्ट की फाइल खोलेगा तो पूछताछ क्या नहीं होगा ? अरे पहले तो गिरफ्तारी होगी । ये क्यों, क्या यह अपराध नहीं है ? आज यदि स्टूल वाला अर्दली जज साहब की कुर्सी पर बैठकर के फाइल माँगे और पढे तो क्या यह अपराध नहीं है? जैसे तब वैसे अब ! जैसे अब तैसे तब ! जो तब था वही अब है! जो अब है वही तब था। नाम का अन्तर है केवल। उस समय कास्ट था अब क्लास हो गया है । उस समय जाति था-- ब्राम्हण, क्षत्री, वैश्य और युद्र, बस कास्ट-जाति था । आज वही 'कास्ट' शब्द 'क्लास' हो गया । 'जाति' शब्द 'वर्ग' हो गया-- क्लास 1, क्लास 2, क्लास 3, क्लास 4। जो डयूटी उस समय ब्राम्हण की थी, वही डयूटी क्लास वन की है। जो डयूटी उस समय क्षत्रिय की थी, ठीक वही आज क्लास टू की है। जो डयूटी वैश्य की थी, वही डयूटी आज क्लास थ्री की है और जो शुद्र था वही आज क्लास फोर है और वैसा ही है । कोई विशेष अन्तर नहीं है। अन्तर केवल यह है कि उस समय एक तंत्र व्यवस्था थी, एक राजतंत्र था। राजतंत्र एक सुनिश्चित व्यवस्था      थी । आज की तरह भ्रष्ट तंत्र नहीं था । लोकतंत्र माने क्या -- भ्रष्ट तंत्र । सीधे भ्रष्ट तंत्र। बेमरउअत भ्रष्ट तंत्र । यहाँ हर चार पाँच बरस पर एम0 एल0 0, एम0 पी0 बदले जाते हैं क्योंकि खा-पीकर वह पेट भर चुका है । उनके घर-परिवार-हित-नात सब सरकारी धन खा-पीकर अघा गये हैं । अब जो भुखाया है वह भी खा-पीकर अघाए । जैसे भूखी गाय खेत में पड़ती है तो वह भी हबर-हबर खाकर पेट भरती है। लेकिन जब पेट भरी गाय खेत में पड़ेगी तब ऊपर की चबरी ही चबाएगी । पेट में इतनी जगह कहाँ है कि हबर हबर चरे। वैसे ही राजा लोग लूटते पाटते थे, एक-दो बार लूट-पाट करके राज्य-किला बना लिये । अब लूट कर करेंगे क्या ? पीढी-दर पीढ़ी वे उसी किला में भोगते हुए चल रहे थे और जनता को एक समान देख रहे थे । अब यहाँ ये तो चर-सीख कर थोड़ा सा ट्रेण्ड हो रहे हैं, अब ये समझ रहे हैं कि एसेम्बली क्या होती है, समझ रहे है कि पार्लियामेण्ट क्या होता है; अब ये समझ रहे हैं कि विधान मण्डल क्या होता है; एम  .एल  .ए  . और एम  .पी  . क्या होता है;   अभी ये सब समझते हैं । बोलने का ढंग, चलने का ढंग-- चार-पाँच साल सीखने-समझने में लगता है । तब तक कान पकड. कर कहा जाता है  कि चलो-चलो  एलेक्शन में जाओ । अपना हिस्सा तो खा ही लिया होगा, जा फिर उसमें से खर्च करके आ जा । नहीं तो चल गद्दी छोड. । ट्रेण्ड के लिये यहाँ कोई जगह नहीं है क्योंकि यह भ्रष्ट तन्त्र है । यदि ट्रेण्ड हो जाओगे तो बढि.या कार्य करने लगोगे, जनता का उत्थान होने लगेगा, जनता का विकास होने लगेगा । इसलिये आप ट्रेण्ड ही न रहने पायें । ऐसे तो यहाँ के राजनेता हैं ।
संविधान धर्म-निरपेक्ष । धर्म-निरपेक्ष संविधान माने क्या ? क्या धर्म कोई  तिलक-चन्दन है ? क्या धर्म कोई दाढ़ी-केश या जटा-जूट है? क्या धर्म एक मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारा का नाम है ? क्या धर्म कोई पोथी-पुराण का नाम है?   क्या धर्म कोई गुरूजी या गुरुत्व है ? धर्म न कोई तन्त्र है, न पन्थ है और न मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारा है । धर्म को भइया पहले जानने-समझने की कोशिश कीजिये। धर्म परमसत्य का हमारे-आपके जीवन का एक सच्चा-सर्वोत्तम विधान है जिसमें आता है दोष रहितता-- यानी हमारे में जो कुछ दोष-दुर्गुण हों उसे निकाल कर फेंके। सत्य की प्रधानता--- यानी हर स्तर पर सत्य को अपनी ऑंख से, नाक से, कान से, कर्म-क्रिया से हर प्रकार से अपने आप को सत्य से जोड़ करके अपने भीतर-बाहर सत्यमय जीवन-- सत्यप्रधान जीवन जीयें । भोग-माया-मृत्यु ये सब त्याज्य हैं, ठीक इसके विपरीत सत्य-धर्म-ज्ञान-भगवान्-अमरत्व-मोक्ष ये सब ग्राह्य हैं। भगवान् ने दुनिया बनाया दो को लेकर । ग्राह्य को ग्राह्य और त्याज्य को त्याज्य रूप में आप व्यवहार करो -- प्रयोग करो उपभोग करो तब आप सही दिशा को प्राप्त करोगे। सही उपलब्धि को प्राप्त करोगे। हमारा-आपका कर्तव्य और दायित्व यह था कि त्याज्य को त्याज्य के रूप में जाने-समझें-परखें और हर क्षण त्याज्य भाव में उसके साथ रहें । त्याज्य पास आने न दें ।  और जो ग्राह्य जो है उसको भी जानें-देखें-समझें-पहचानें-परखें और त्याज्य के साथ त्याज्य भाव रखें तथा ग्राह्य के साथ ग्राह्य भाव रखें । ये हम सभी के कर्तव्य और दायित्व थे । यदि हम सभी इस कर्तव्य और दायित्व के लिये आगे बढ़ें और असत्य को त्यागने के लिये सत्य को अपनाने के लिये जब आगे बढ.ते तो इसके पहले इसका कर्तव्य आता कि हम सब पहले जाने- देखें -समझें-परखें-पहचानें कि त्याज्य क्या है ? असत्य क्या है जिसे हम त्याग    दें ? सत्य क्या है जिसे हम ग्रहण करें ? अब सवाल उठता है कि असत्य जो त्याज्य है उसे ग्रहण करें और सत्य जो ग्राह्य है उसे त्याग दें और तब कहें कि हमको बड़ा कष्ट है, हम बड़े बेचैन हैं, हमको बड़ी अशान्ति ही अशान्ति है, हम तो बड़े परेशान हैं । हम क्या कहें भगवान् ने हमारे जीवन में न जाने क्या लिखा है ?
   शर्म नहीं आती बिना जाने-देखे-परखे भगवान् को दोषी बनाने के लिये ? जब तुम विपदा के यिकार होते हो तब तुमको भगवान् याद आता हैं ? जब सुख से पेट भरने लगते हो तब आराम से घूमते-फिरते हो । तब तो भगवान् याद आता ही नहीं । कबीर दास ने क्या कहा था कि---
          सुख में सुमिरन सब करे, दु:ख में करे न कोय ।
          जो सुख में सुमिरन करे, तो दु:ख काहे को होय ॥
   एक और दोहा उन्होंने कहा था---
          सुख में सुमिरन न किया, दु:ख में किया याद ।
          कहे कबीरवा दास  कीकौन सुने  फरियाद  ॥
     एक महानुभाव आकर कहते हैं कि आप लोग भगवान् वाले हैं तो भगवान् से कहते क्यों नहीं बारिस के लिये ? हमने कहा ये सब इतने पतित गिरे हुये गृहस्थ हैं कि कहते हैं पहले जब हाथी गिर जाता था और मर जाता था तो कोई उठाने वाला नहीं होता था तो वहीं गङ्ढा खोदकर लुढ.का दिया जाता था और ढक दिया जाता था । ठीक यही हाल इन गृहस्थों का है । ये ऐसे गिरे हुए हैं उस हाथी की तरह से कि ब्रम्हाण्ड में किसी को भी इनको उठाने की क्षमता नहीं होती सिवाय परमेश्वर के। ऐसे ये गिरे हुए प्राणी हैं । एक रानी मक्खी ला दिये -- डिब्बा में एक रानी मक्खी रख लिये हैं और अपने खेत, दुकान, नौकरी करके लावें कमा कर रानी मक्खी के लिये जमा करें और सब खा-पीकर बराबर करें । लूट-पाट कर, खटकर, कमाकर ले आवें । घूस लेकर भ्रष्टाचार करके ये धन लावें, मिल बाँट कर सब खावें । पाप तो इनको भुगतना है भोगें । इस तरह से ये अपना कर्तव्य और दायित्व बना लिये । पैर में चोट लग रहा है और कह रहे हैं कि बड़ा दर्द हो रहा है । ठोकर लग रहा है ये  गृहस्थी में ठकरा बाँधा कर घूमते हैं ।
   आखिर किसी ग्रन्थ में कहीं देखा जहाँ मानव जीवन का वर्णन है ? एक छोटा सा नया कोई मशीन लिया जाता है तो उसका बुकलेट मिलता  है । उसके मैकेनिक के पास जाया जाता है यह पता करने के लिये कि भैया यह कैसे ऑपरेट होगा ? यह कैसे चालित होगा ? इसकी कैसे रक्षा-व्यवस्था   होगी ? आखिर किसी ग्रन्थ में कहीं देखा जहाँ मानव जीवन का वर्णन है ? दुनिया की सब मशीनों को बनाने वाली यह मशीन है । ऐसी कोई मशीन नहीं है जो मानव शरीर से न बनायी गयी हो और न संचालित हो । आटोमेटिक मशीन जो बनती है वह भी इसी मशीन के द्वारा बनाई गई है । यही मशीन है न दुनिया की सभी मशीनों को बनाने वाली और दुनिया की सभी मशीनों को चलाने वाली । इसके विषय में आपको जानने की आवश्यकता नहीं है कि यह किस चीज की मशीन है और यह मशीन किसलिये है ? क्या इसको जानने की जरूरत नहीं पडी? क्या सब जाने बिना सर्विस करने लगे । बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ जय !
   चार चार अक्षर पढ. लिये-- चार पैसे कमाने लगे-- बस पेट भरने लगा और थोडा. हिलने-डुलने लगे तो क्या बोलने लगे कि ये साधु-महात्मा सब धरती के भार हैं ।  कल्पना कीजिए कि ये किस मस्तिष्क के हैं ! अरे भार तो ये सब हैं, ये भार हैं भार! धरती के भार तो ये गृहस्थ लोग जी हैं ! सोचिए तो सही ! आप लोगों का यह छटपटाहट दूर हो जाएगा, जरा घबड़ाऐं नहीं ! आप सब को भी बोलने का मौका देंगे। जो भी कुछ होगा न दिमाग में, सब बोलने का मौका आप लोगों को देंगे । हम बोलना जानते हैं तो सुनना भी जानते हैं। और जो बोलेगा उसका समाधान भी कर सकते हैं।  केवल भगवत् कृपा बनी रहनी चाहिए । इसलिए किसी को कुछ कहना-सुनना हो तो थोड़ा धीरज बनाये रखिए । थोड़ा सा धैर्य बनाये रखें । दिल खोल कर बोलने का मौका दूँगा। निर्भय और बिल्कुल नि:संकोच बोलिएगा। यह वह गुरुवाइ नहीं है, यह वह संस्था नहीं है जहाँ गुरुजी बुलायेंगे आइए और ज्यों बोलना शुरू करेंगे तब चेला जी लोग घांव-घांव करने लगेंगे । यहाँ एक व्यक्ति चूँ तक करने को नहीं आएगा! मेरे खिलाफ भी यदि कुछ जानते हों तो दिल खोल कर बोलिए। नि:संदेह यदि भगवत् कृपा होगी तो उन सबका समाधान मिलेगा । यहाँ मिला तो क्या मिला, दुनिया के सबसे बड़े कुम्भ मेले में भी यह व्यवस्था रहती रही है ।  वहाँ भी ऐसी ही व्यवस्था मिलेगी । उस पण्डाल में भी कुर्सी और माइक सुलभ रहता है। इस ज्ञान को गलत ठहराने वाले को अवैतनिक नौकर मिल जाएगा-- इसके साथ सैकड़ों अवैतनिक नौकर मिल जाएंगे। जिस चार पैसे के लिए नौकरी कर रहे हैं न, जो पेट न काटें तो चार पैसा बचना मुश्किल हो जाएगा। यहाँ ऐसे ही आपको करोड़ों करोड़ों के आश्रम मिल जाएंगे। यहाँ कोई इतना कच्चा खेल खेलने यह (सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस) नहीं चला आया है। इसका विधान जानते हैं, क्या है? यहाँ का विधान है यहाँ का ठन ठना ठन और ठन ठन ठन ठन ठन! कोई लल्लो चप्पो यहाँ नहीं है। यहाँ तो सीधे फटक के ल और फटक के द! फटक के ल , फटक के द । जो दे रहे हैं -- खूब जाँच पड़ताल कीजिए। जितना उड़ सकते हों जाँच करिए। जितना ग्रन्थ में ढूढ़ सकते हों ढूढ़ कर जाँच करिए । जितना प्रैक्टिकल प्रयोग कर सकते हैं, करके जाँचिए। हम यह जानकर आए हैं इस काशी नगरी में! यहाँ बड़े विद्वान जी लोग रहते हैं, बड़े तपस्वी रहते हैं। बड़े धर्मात्मा जी लोग रहते हैं । ये चुनौती देकर के आए हैं, परचा पोस्टर छपवा कर आए हैं । प्रचार के लिए जो डिमाण्ड हुआ तो और मंगवाकर के बटवाए हैं । दिल खोल करके हर कोई अपना यहाँ समाधान ले। प्रश्नोत्तर करे । एक बात जरूर याद रहे कि हर किसी को शान्तिमय ढंग से सद्ग्रन्थीय मर्यादा के अन्तर्गत ही कोई वार्ता करनी होगी । मनमाना कुछ नहीं। हम जो बोलते हैं वह गलत लगे तो आप प्रमाण माँगिए मै दूँगा ग्रन्थों से । हिन्दू हो तो वेद, गीता, उपनिषद, रामायण से प्रमाण लीजिए। मुस्लिम हो तो कुर्आन शरीफ से प्रमाण          लीजिये । यदि आप ईसाई हैं तो बाइबिल से लीजिए बेधड़क ! सिक्ख हैं और यदि कहें तो गुरुग्रन्थ साहब में भी मिलेगा। यहाँ कि कोई बातें अप्रमाणित नहीं होंगी। हाँ एक बात जरूर है हमारे आपके व्यवहार पर जो बातें आ रही हैं, इसका प्रमाण तो हमारा आपका व्यवहार ही बतलायेगा। इसका निर्णय हमारा आपका व्यवहार ही करेगा। यह समाज जितना निकृष्टता में जा चुका है, जितना पतन को जा चुका है, इसका प्रमाण नहीं मिलेगा । 
कहने के लिए जल प्रदूषित, वायु प्रदूषित, नदियाँ प्रदूषित, समुद्र प्रदूषित, वायु मण्डल भी प्रदूषित । एक ऐसा प्रदूषण जो पहले कहीं सुना नहीं होगा-- ध्वनि प्रदूषण। क्या क्या सुनने को मिल रहा है ! अब आसमान से मुहँनोचवा आ रहा है। एस पी साहब तो कह रहे हैं कि 'मैंने तो दो-दो बार देखा है । रुकिए मैं कमिश्नर साहब से कह रहा हूँ, सहायता माँग रहा हूँ।' अरे सहायता माँगते रहो, तुम लोग पहले अपने नियत को तो ठीक करो। क्या करेगा मुख्य सचिव जिस मति-गति के तुम हो उसी मति -गति का वह भी है । पहले नियत को तो ठीक किया जाय। ये मुहँनोचवा आसमान से आने लगा। हम लोग ग्रन्थ में पढ़ते थे कि राक्षस उड़कर आक्रमण कर देते हैं। आप लोग सीरियल देखे होंगे मुकेश खन्ना का । ये शक्तिमान जो सीरियल आता है उसमें अंधेरा कायम रहेगा, आता है । तो सबको ठीक करता है शक्तिमान । आज सब जगह भ्रष्टता छायी हुई है --कहते हैं भगवान् क्या है, भगवान् एक कपोल कल्पना है। जब तक गद्दी चमकती रहती है तब तक धर्म कुछ नहीं, अरे निर्पेक्षता है । जब मरते कटते हैं तो क्या होता है, रेडियो रोने लगता है। टेलिविजन बोलने लगता है। कहीं रामायण पाठ तो कहीं गीता पाठ तो कहीं कबीर का भजन शुरू होने लगते हैं । कहीं गुरुग्रन्थ साहब का पाठ तो कहीं कुर्आन का पाठ तो कहीं बाइबिल का पाठ । अब आप एक नया सूचना जाने होंगे कि पार्लियामेन्ट शुरू हो गया है कि कहीं कोई न कोई मर रहा है -- इस पर विचार होना चाहिए। बहस होना चाहिए । पूजा होना चाहिए । इस संसद भवन को शुद्ध बनाना चाहिए। ये चोर-डाकू-लुटेरा आ रहे हैं बैठने के लिए तो यह संसद भवन शुद्ध नहीं होगा तो क्या शुद्ध ही रह जाएगा । यह है पार्लियामेन्ट का हाल !
इस तरह से जो है आप बन्धुओं को यह जान लेना चाहिए कि ये गृहस्थ धरती के भार हैं । चाहे नौकरी वाले हों, चाहे खेती वाले हों । चाहे बीवी-बच्चे वाले हों--ये सब धरती के भार हैं । धरती बेचारी कराह रही है। इस भार से धरती कराह रही है और साधु-महात्माओं को कहते हैं कि धरती के भार हैं। ये साधु-महात्मा कुछ करते-धरते हैं नहीं, इसलिये ये सब धरती के भार हैं । ले ओ इनके बुध्दि का दिवाला निकल गया है। नहीं विवेक तो बुध्दि का भी प्रयोग नहीं रह गया है। जो स्वयं इस धरती के भार हैं वे दूसरे को जो अपना मंजिल खोजने में लगा है, उसी को धरती का भार घोषित कर दिये । जो विद्वान जी लोग हैं आयें । उन्हें मौका दे रहा हूँ। बतलायें कि कौन धरती का भार है? खाना खाता है गृहस्थ भी और खाना खाते हैं हम लोग भी, साधु-महात्मा भी । भोजन करता है गृहस्थ भी और भोजन करता है साधु-महात्मा, हम लोग भी। दोनों खाना खाते हैं जीने के लिए। गृहस्थ भी खाना खाता है जीने के लिए और साधु-महात्मा-उपदेशक भी खाना खाता है जीने के लिए । अब सवाल है भार कौन है धरती का। गृहस्थ जी या साधु-महात्मा-उपदेयक । हम लोगों को कुछ मनवाते नहीं है। मेरी लाइन मनवाने की नहीं है। हमारी लाइन जानने-जनवाने की है, देखने-दिखाने की है, समझने और परखने पहचानने की है। हर प्रकार से 'सत्य' होने पर ही स्वीकार करने की है । हम किसी से कुछ मनवाते नहीं और न किसी का कुछ मानते हैं। न मानने का ढंग है और न मनवाने का ढंग है। जानने का ढंग है और जनाने का ढंग है । आप कुछ जानते हैं हम नहीं जानते, जना दीजिए बड़ी खुशियाली ! भगवत् कृपा से ज्ञान कि सच्चाई हमारे पास है। आप जान लीजिए, देख लीजिए, परख लीजिए । जाँच -परख-पहचान कर लीजिए । हर प्रकार से 'सत्य' ही हो-- कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई यंका न हो, डाउट न हो तो स्वीकार कीजिए। आगे बढ़िए और अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाइए, धन्य बनाइए! इस गन्दे नाले जैसे इस गिरे हुए पतित स्थिति में रहने वाले आप लोग इस नाले के बाहर आइए। अपने को पवित्रतम् बनाइए । मानव योनी को अपने को अपने अस्तित्व, कर्तव्य और दायित्व को जानिए-पहचानिए । तब जाकर के पवित्रतम् होंगे। अन्यथा निकृष्टतम्  हैं। निन्दनीय, घोर-घोर निन्दनीय हैं चाहे जितना विद्वान बने रहिए । कर्म करते हैं, ईमान से जीवन जीते हैं और कमाते हैं, दो पैसा भिक्षु-भिखारी को देते हैं, यह सब सही करते हैं । तब भी सत्य की परिभाषा में 'गलत' हैं, दुष्कर्मी हैं। हर वह व्यक्ति जो अपने मंजिल की तरफ न जाकर पतन की ओर जाता या ले जाता है, वह दुष्कर्मी है । हर जीव जो अपने को उत्थान और उत्कृष्ट मंजिल की तरफ ले जाने के बजाय पतन और विनाश की ओर ले जाता है, वह कभी सत्कर्मी नहीं कहला सकता । वह दुष्कर्मी ही कहलाएगा ।
आपने कभी सोचा कि आप जो कर रहे हैं -- आप जिस प्रकार का भी बढ़िया से बढ़िया जान कर जीवन जी रहे हैं, कभी आपने जानने का कोशिश किया, कभी आपने सोचा कि क्या यही आपके कर्तव्य थे? पतन और विनाश वाले ? पतन और विनाश को ले जाने वाला ही जीवन? इसीलिए मानव जीवन मिला था ? या उत्थान और कल्याण के मंजिल को जानने और पाने के लिए ? आप लोग भी खाते हैं, हम लोग भी खाते हैं। आप लोग भी वस्त्र पहनते हैं, हम लोग भी वस्त्र पहनते हैं । जीने के लिए आप लोग भी खाते हैं और जीने के लिए हम गुरुजन-महात्मन्-उपदेशक भी खाते हैं। अब  सवाल यहाँ है कि धरती का भार कौन? ये बीवी-बच्चा घर-परिवार वाले व्यसनी या यह सत्य से जुड़ने वाले, सत्य रूप को जनाने और बनाए रखने वाले सत्यपथी। देखिए, जानने की कोशिश करिये, परखने की कोशिश करिये। बेमरउअत ! अभी कुर्सी रखवा देंगे सच्चाई को जानने समझने के लिए। आप खाते-पीते जीवन जीते हैं। भोगते हैं भोग्य सामग्रियाँ इकट्ठा करने के लिए । भोग भोगना और भोग्य सामग्री इकठ्ठा करना । नौकरी किसलिए ? भोग्य सामग्री इकठ्ठा करने के लिए ! ये बिजनेस-व्यापार किसलिए? भोग्य सामग्री इकठ्ठा करने के लिए । खेती बारी किसलिए? भोग्य सामग्री इकठ्ठा करने के लिए । यानी जी रहे हैं किसलिए ? भोगने और भोग्य सामग्री इकठ्ठा करने के लिए। अट नहीं पा रहा है तो जुटाने के लिए कुछ भी करते हैं । कहीं दुकानें खोल लिये, कहीं बिजनेस ही करने लगे, कहीं नौकरी ही खोजने लगे। परिश्रम करके कहीं कोई धन्धा खोजने लगे । काहे भाई ! क्यों ? अब रोटी-कपड़ा नहीं है, रोटी-कपड़ा के लिए!
दो भाग है । गरीब और अमीर । गरीब है तो रोटी-कपड़ा-मकान के लिए सब कुछ करता है । और अमीर है तो उसको रोटी-कपड़ा-मकान की तो कमी है नहीं, तो उसको साधन और सम्मान चाहिए। गरीब है तो रोटी कपड़ा मकान के लिये अपना ईमान बेचे हुए है। इसके लिये चाहे जो कुछ भी करना पड़े । दुष्कर्मी बना हुआ है। और अमीर है तो उसको साधन और सम्मान चाहिए। छठवाँ भी कोई चीज है संसार में जो आपको मिले। छठवीं चीज संसार में क्या है जो मिले। रोटी, कपड़ा, मकान और आगे बढ़िए तो साधन और सम्मान चाहिए । अटल जी को भी साधन और सम्मान चाहिए । कलाम साहब को भी साधन और सम्मान चाहिए । वैज्ञानिक थे कलाकार थे इनको और बड़ा सम्मान चाहिए । महामहिम के सम्मान वाले राष्ट्रपति हो गए ।
------------ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस

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