सच्चा धर्म 'एक' ही है, अनेकानेक नहीं !


वास्तव में 'धर्म' एक सत्य-प्रधान, दोष-रहित, सर्वोच्च, उन्मुक्त अमर जीवन विधान  है''  जिसमें साम्प्रदायिकता का लेशमात्र भी स्थान नहीं है। हाँ ! आजकाल यह बात अवश्य हो गयी है कि मिथ्या महत्तवाकाँक्षी लोग 'धर्म' के नाम पर साम्प्रदायिकता रूपी चादर को ओढ़ कर स्वार्थपूर्ति रूपी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं जिसका दुष्परिणाम है कि  'धर्म' बदनाम हो रहा है जबकि 'धर्म' जो सदा से ही वास्तव में सत्य प्रधान एक ही रहा है और सच्चाई पूर्वक देखा जाए तो 'धर्म' एक ही है और वह यही है कि 'धर्म' एक  सत्य प्रधान, दोष-रहित, सर्वोच्च एवं उन्मुक्त अमर जीवन विधान है ।'
आजकल जो हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई आदि-आदि नामों पर 'धर्म' का जो वर्गीकरण किया गया है, वास्तव में वह (हिन्दू-धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म, सिक्ख धर्म आदि-आदि तथाकथित भेद वाची नाम) 'धर्म' नहीं, बल्कि सम्प्रदाय हैं। सच्चा 'धर्म' तो वास्तव में 'सत्य-सनातन  धर्म' है जो मूल-भूत सिध्दान्त रूप 'एको ब्रम्ह द्वितीयोनास्ति' तथा कर्म-अध्यात्म और तत्त्वज्ञान रूप तीन पध्दतियों वाला तथा 'असदोमासद्गमय (असत्य नहीं, सत्य की ओर चलें'), तमसोमाज्योतिर्गमय (अन्धकार नहीं, प्रकाश की ओर चलें) और 'मृत्योर्माऽमृतंगमय (मृत्यु नहीं, अमरता की ओर चलें)' प्रधान-विधान है ।
ठीक यही बात 'ईसाइयत धर्म' (क्रिश्चियानीटी) के अन्तर्गत भी है । जैसे 'वन्ली वन गॉड' तथा वर्क विद स्प्रिचुअलाइजेशन (अध्यात्म) और नाँलेज (तत्त्वज्ञान) रूप तीन पध्दतियों वाला तथा सेल्फ-सोल एण्ड गॉड रूपी    उपलब्धि तथा 'डिवोशन' एण्ड वर्सिप विद विलिवनेश टू गॉड' मात्र ही है ।
इस्लाम धर्म की भी मान्यता 'सत्य सनातन धर्म' अथवा ईसाइयत धर्म वाला ही है । अन्तर मात्र कुछ भाषा और देश-काल-परिस्थिति जन्य ही है, न कि कोई मौलिक। इस्लाम की भी मान्यता के अन्तर्गत वही मान्यतायें हैं। जैसे-- 'ला अल्लाह इअिल्लाहुव'--'तौहीद'  (एकेश्वरवाद) तथा 'मोहकम' (कर्म-विधान) 'मुतशाविहात' (अधयात्म)  और 'हुरूफ मुकत्ताऽऽत' (तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान रूप खुदाई इल्म) रूप तीन पध्दतियों वाला तथा रूह से रूहानी, नूर से नूरानी और अल्लाहतऽला की मेहरबानी वाले तीन प्रकार की उपलब्धियों वाला अल्लाहतऽला के प्रति अथवा दीने इलाही के राह में मुसल्लम ईमान के साथ (एकमेव अल्लाहतऽला की राह में मुसल्लम ईमान के साथ) समर्पित शरणागत जीवन के रूप में रहना-चलना ही 'इस्लाम धर्म' है ।
ठीक यही ही 'सिक्ख-धर्म में भी है । जैसे सिक्ख धर्म भी मूलभूत सिध्दान्त रूप 'एकमेव एक ओंकार' (१ ॐ कार) सतसीरी अकाल रूप सूत्र-सिध्दान्त वाला तथा  1ॐकार- सतसीरी अकाल पुरुष के साक्षात् अवतार रूप सद्गुरु के प्रति पूर्णत: समर्पित एवं शरणागत हो 'दोष-रहित उन्मुक्त जीवन विधान' रूप सच्चा अमर जीवन विधान ही सिक्खिजम भी है ।
अब आप ही सद्भावी पाठक बन्धु देखें कि मूलभूत सिध्दान्त रूप अभीष्ट लक्ष्य तो सबका एक ही है । जैसे-- 'एकोब्रम्ह द्वितीयोनास्ति' अथवा अद्वैत्तत्त्व बोध अथवा एकत्त्व बोध' अथवा 'वन्ली वन गॉड' (एकमेव एक गॉड-फादर  (भगवान) अथवा 'ला इलाह इल्लाहुव' (एकमेव केवल खुदा (भगवान) ही पूजा-आराधना का अभीष्ट है, दूसरा कोई नहीं) अथवा 'एक ॐ कार-सतसीरी अकाल के साक्षात् अवतार रूप सद्गुरु ही सर्वसमर्थ और पूजा बन्दना-आरती-भजन- कीर्तन का अभीष्ट है, दूसरा कोई नहीं ।'
'अब आप ही सद्भावी पाठक बन्धुगण सूझबूझ सहित उपर्युक्त को देखकर निर्णय लें कि क्या कोई भेद भाव है ? क्या सभी एकमेव एक खुदा-गॉड-भगवान-सत् सीरी अकाल वाला ही नहीं है ? पायेंगे कि एकमेव एक खुदा-गॉड-भगवान- सत सीरी अकाल पुरुष अथवा सद्गुरु रूप एकमेव एक ही अभीष्ट उपलब्धि वाला एक ही 'धर्म है, दो नहीं ।  अनेकानेक धर्मों की कल्पना तो बिल्कुल ही मिथ्यात्व पर आधारित है।
----------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

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