धर्म-निरपेक्षता सत्य-निरपेक्षता है और सत्य-निरपेक्षता मति-भ्रष्टता है !


जिस प्रकार खुदा-गॉड-भगवान-यहोवा-अकालपुरुष आदि-आदि अनेकानेक नाम वाला सर्वोच्च शक्ति- सत्ता रूप भगवान सदा-सर्वदा एकमात्र 'एक' ही था, है और रहने वाला है, ठीक वैसे ही 'धर्म' भी एकमात्र एकमेव एक ही था, है और रहने वाला है क्योंकि 'धर्म' उस एकमेव एकमात्र 'एक' ही खुदा-गॉड-भगवान का ही यथार्थत: 'ज्ञान' और व्यवहार-विधान है जो  वास्तव में दोष रहित और सत्य प्रधान है ।
जीव के उध्दार और जीवन के सुधार का सर्वोत्तम विधान ही वास्तव में 'सच्चा  धर्म' है ।
जिस प्रकार  से सत्य न कभी दो था, न कभीं दो है और न कभी दो होने-रहने वाला है, ठीक वैसे ही 'धर्म भी 'ला इलाह इअिल्लाहुव' ( तौहीद-एक परमेश्वरवाद) अथवा 'वनलि वन गॉड' अथवा  'एक ॐ कार सत्सीरी अकाल अथवा अद्वैत्तत्त्व  बोधा अथवा एकत्त्वबोध ही वास्तव में 'सच्चा धर्म' है ।
अत: आप सभी सुशिक्षित, विद्वान, बुध्दजीवी, पत्रकार, सम्पादक और राजनेता आदि सभी को ही इस यथार्थता को सहज ही स्वीकार करना   चाहिए । जब इस्लाम का 'ला  इलाह इअिल्ला हुवअर्थात् एकमेव 'एक' परमेश्वरवाद ठीक वैसे ही ईसाइयों का एकमेव एकमात्र सबका परमपिता-परमेश्वर Only One GOD ही है अथवा  सिक्खों  का एक ॐ कार-सत्सीरी अकाल अथवा सनातन हिन्दुओं का 'एकोब्रम्ह द्वितीयो नास्ति' अथवा 'एकम् सत्यम्' या 'एकत्त्वबोध अर्थात् सबकी मान्यता एकमेव 'एक' ही है तो  कोई भी व्यक्ति उस परमसत्य रूपी 'धर्म' से निरपेक्ष कैसे हो सकता है ?
मुझ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का पूरे धरती वासियों को चुनौती है कि कोई भी बतला दे कि किसे सत्य की अपेक्षा नहीं है ? और साथ-ही-साथ यह भी चुनौती है कि कोई भी 'धर्म' का जानकार यह बतला दे कि परमसत्य अथवा विशुध्दत: 'सत्य' से अलग हटकर 'धर्म' कोई चीज है ? नहीं ! अर्थात् सत्य ही 'धर्म' है ।
'धर्म-निरपेक्ष होने का मतलब नाना प्रकार के आडम्बरी, ढोंगी, पाखण्डी, धूर्तबाज, मिथ्याज्ञानाभिमान मिथ्या महत्वाकाँक्षी एवं मिथ्याहंकारी आदि-आदि सभी को ही अपने स्वार्थ एवं मिथ्यामहत्वाकाँक्षा के पूर्ति हेतु किसी भी प्रकार का संगठन अथवा संस्था कायम कर जनसमुदाय के धन और धर्म-भाव को शोषित करने की छूट देना, यह कहते हुए कि हमारा संविधान धर्म-निरपेक्ष है इसलिए  हर किसी को अपना मत-मतान्तर को लेकर चलने का अधिकार है   ।
इससे तो स्पष्टत: जाहिर होता है कि यह संविधान भी मति-भ्रष्टों के विकृत मस्तिष्क की देन है, क्योंकि बात क्या है कि नकली मार्केटिंग इन्सपेक्टर या कोई नकली अधिकारी बनने पर उसकी गिरफतारी की जायेगी और आडम्बरी ढोंगी-नकली-पाखण्डी, धर्म-नाम संस्था-संगठन-व्यक्ति की नहीं की जायेगी? अपराधिक घोषित करने या प्रतिबन्धित करने का कार्य नहीं किया जायेगा ? जब सत्य 'एक' है तब धर्म भी 'एकहै और जब   सत्य-धर्म 'एक' ही है तो  पूर्ण और
सत्य मत भी 'एक' ही होगा । शेष तो सभी  अपूर्ण  और असत्य ही होंगे। उन अपूर्ण और असत्य वालों को संरक्षण कैसा?
---------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

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